जिस प्रकार बारातो मे , मनोरंजन के अधिकतम साधन एकत्रित कर बाराती प्रसन्न होते है । वही स्तिथि , अब कांवड़ य़ात्राओ मे भी होने लगी है । यद्यपि , जागर प्रथाओं मे देव डांगरो को नहलाने के लिये गंगा संमेत पवित्र नदियों का जल लाने की प्रथा कोई नई नही है । कोशिस यह होती है कि वह जल लाया जाय जो कम से कम सात नदियों से संगम कर चुका हो यानि मिश्रण हो उसी जल को पवित्र माना जाता है ,उसके बाद भी बिना गौमूत्र के यह अनुष्ठान पूर्ण नही होता ,। गंगा जल यात्रा व देव डांगरो की यात्राओं मे आगे से गौमूत्र व गंगा जल छिडकते हुवे जाना प्राचीन प्रथायें है । प्राचीन प्रथा मे देव डागरो व दास को ही नाचने की छूट थी ,।नाचने के लिये इनके शरीर म देव अवतार जरूरी होता था शिवजी का सैम अवतार पहाड़ो मे काफी लोकप्रिय है। सैम सभी देवताओं के अग्रज माने जाते है । इनके अग्रज हरू व परु देव हैजो निराकार देवता है वही इनके मार्गदर्शक है ।हरू व परु की कोई मूर्ति नही होती सैम की भी मूर्तियां नही होती है, यह लिंग स्वरूप मे ही पूजे जाते है । हरू परू तो बिशुद्ध रूप से धूनी मे ही बिराजित माने जाते है इनकी कोई मूर्ति नही होती गुरु गोखरनाथ भी मूर्तिया में नही लोगों के मनो मे बिराजते है, जागर से ये जीवन्त हो जाते है , हटयोग इनकी शिक्षा, लोक कल्याण गोरखनाथ का उद्देश्य है ,।कहा जाता है कि ये ह्रदय मे वास करते है। धूनी यानि यज्ञशाला इन्हें प्रिय है ये किसी भी प्रकार की बलि भी नही मांगते नाचते गाते व झूमते हुवे गंगा जल लाने की प्रथा नई है, पर प्राचीन प्रथाओं मे उसी को नाचने की अनुमति थी, दिसमे देव अवतरित होते थे अब कांवड़ में सभी को नाचने की छूट है ।
पहले के लोग धार्मिक यात्राओं मे गौ मूत्र का प्रयोग करते थे अब गौमूत्र के बजाय सैन्ट का प्रयोग करने लगे है । गौ मूत्र को पुराने लोग एन्टी सैप्टिंग महाऔषधि के रूप मे प्रयोग करते रहे है ।पहाडो मे जब अस्पताल नही थे तब हर मर्ज की दवा केवल जागर ही माना जाता था बैद्य भी दूसरे नंम्बर पर आते थे । लोग अपना उपचार , बिभूत , देव डागर को नचाकर (,शौक ट्रिटमैन्ट) लेकर , या लंघन , फिर परहेज अथवा करार लेकर करते , प्रकृति सबसे बड़ी चिकित्सक मानी जाती रही ।पर विज्ञान के अविष्कार ने इस मिथक को तोड़ डाला , अब लोग दवाइयो की तरफ ज्यादा आकर्षित होते है । पर कांवड यात्रा पर लोगों का कथन है कि यह उपचार के लिये नही मनोकामनाओं की सिद्धि के लिये की जाती है
यद्यपि देखा जाय तो कांवड यात्रा का स्वरूप बारातो की तरह ही हो गया है ।इसमे कन्धे मे जल लाता शाधक मुख्य किरदार निभाता है भोले के नाम पर वह जो कुछ भी करे लोग उसे पवित्र भाव से ही देखते है ।