नबी रजा खां की 1988 में मौत हो गई। इसके बाद भी हल्द्वानी हिंसा के मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक उनके नाम से नगर निगम, डीएम से लेकर कोर्ट तक पैरवी करता रहा। 16 साल तक सरकारी अमले को इसकी जानकारी तक नहीं हुई। कंपनी बाग की 13 बीघा जमीन को खुर्द-बुर्द करने के लिए अब्दुल मलिक, उसकी पत्नी साफिया मलिक सहित छह लोगों ने जमकर कागजों में कूट रचना की। नबी रजा खां के मरने के बाद भी उसके नाम से कोर्ट में मुकदमा दायर किया गया। जब नबी रजा खां को बाग के लिए लीज में मिली जमीन का फ्री होल्ड नहीं हुआ तो जमीन को 10 रुपये से 100 रुपये के स्टांप में बेच दिया गया।
जब मामले ने तूल पकड़ा तो नगर निगम ने इस जमीन से संबंधित कागजों की जांच की। जांच में कई तथ्य चौकानें वाले सामने आए। नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय ने प्रेस कांफ्रेंस कर बताया कि मलिक का बगीचा की उनके वहां कंपनी बाग नाम से नजूल अनुभाग में फाइल है। कहा कि नबी खां को ये बाग लीज में मिला था।
सईदा बेगम पत्नी नबी रजा खां, सलीम रजा खां पुत्र नबी रजा खां, अख्तरी बेगम पत्नी नन्हें खां ने 1991 में अध्यक्ष नगर पालिका परिषद हल्द्वानी एक शपथ पत्र दिया था। उसमें कहा गया था कि नबी रजा खां की मृत्यु तीन अक्तूबर 1988 को हो गई थी। उन्होंने कहा कि ऐसे ही कई झूठे शपथ पत्र और झूठे शपथ पत्र के आधार पर रिट भी डाली गई। कहा कि मामले पकड़ में आने पर नगर निगम ने कोतवाली में तहरीर दी है।