उत्तराखंड के अधिकारी स्वयं को समझ रहे निर्वाचित जनप्रतिनिधि,पद से त्यागपत्र देकर पूरी तरह से राजनीति में आकर लड़े चुनाव-बिट्टू कर्नाटक

News Desk
4 Min Read

- Advertisement -

अल्मोड़ा-उत्तराखंड राज्य के लिए किए गए संघर्ष के समय जनता ने बिल्कुल भी नही सोचा था कि राज्य गठन के बाद इस राज्य में अफसरशाही और ब्यूरोक्रेसी हावी रहेगी और इस राज्य में जनता द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को अधिकारी अपने सामने नगण्य समझेंगे,ये उत्तराखण्ड राज्य के लिए बहुत अच्छे संकेत नहीं हैं ।

यह लोकतंत्र एवं जनता द्वारा किए गए निर्वाचन पर करारा तमाचा भी है जिसका संज्ञान अगर सूबे के मुख्यमंत्री ने तत्काल लेकर संबंधित अधिकारी का जवाब तलब नहीं किया तो आने वाले समय में इसके परिणाम लोकतंत्र के लिए बेहद घातक होंगे।यह कहना है उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं पूर्व दर्जा मंत्री बिट्टू कर्नाटक का।आज प्रेस को जारी एक बयान में पूर्व दर्जा मंत्री बिट्टू कर्नाटक ने कहा कि विगत दिनों की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जिसमें स्पष्ट दिख रहा है कि जनता द्वारा निर्वाचित केदारनाथ की विधायिका मुख्य सचिव को ज्ञापन सौंप रही है।मुख्य सचिव  अपनी कुर्सी में आराम से बैठे हुए हैं और विधायिका खड़े होकर उन्हें ज्ञापन सौंप रही है।

मुख्य सचिव जैसे जिम्मेदार ओहदे पर बैठे हुए व्यक्ति ने न तो विधायक पद को सम्मान दिया और न ही एक महिला को, जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।उन्होंने कहा कि यह केवल केदारनाथ विधायिका का ही अपमान नहीं है अपितु केदारनाथ की उस सम्पूर्ण जनता का अपमान है जिन्होंने उन्हें विधायक के पद पर निर्वाचित किया।श्री कर्नाटक ने कहा कि उत्तराखंड राज्य बने आज 23 वर्ष हो गए हैं लेकिन ऐसा लगता है कि यहां के अधिकारी और अफसर स्वयं को सर्वे सर्वा समझने लग गए हैं।जो अफसर विधायक जैसे पद को सम्मान नहीं दे पा रहे हैं वह एक आम आदमी के साथ किस तरह का व्यवहार करते होंगे यह एक सोचनीय विषय है। उन्होंने कहा कि आज निचले स्तर से ऊपरी स्तर तक अफसरशाही पूरे राज्य में हावी है, अधिकारी स्वयं को सर्वोपरि मान कर  मनमाने तरीके से अपनी कार्यशैली में लगे हुए हैं।

उन्होंने कहा कि यह अफसरशाही नहीं बल्कि हिटलर शाही है जिसे तुरंत न रोका गया तो इसके दूरगामी दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे।उन्होंने कहा कि सूबे के मुख्यमंत्री को तत्काल इस तरह की घटना का संज्ञान लेकर संबंधित अधिकारी पर तत्काल कार्यवाही करनी चाहिए ताकि अधिकारियों को एक सबक मिले।उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को ऐसे अधिकारियों के लिए अनुशासन की एक पाठशाला भी लगानी चाहिए जिसमें इन अधिकारियों को समझाया जाए कि प्रोटोकॉल नाम की भी कोई चीज होती है एवं जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों का सम्मान करना बेहद आवश्यक है, क्योंकि यह सम्मान केवल उन जनप्रतिनिधियों का ही सम्मान नहीं है अपितु जनता की भावनाओं से जुड़ा हुआ एक गंभीर मुद्दा भी है।उन्होंने कहा कि आज हर जिले में यही स्थिति देखने को मिल रही है कि अधिकारी एवं अफसर स्वयं को सर्वे सर्वा समझकर मनमाने तरीके से कार्य कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि अधिकारी अपनी कार्यशैली बदलें और इस बात को समझें की जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि का सम्मान  जनता का सम्मान है।उन्होंने कहा कि यदि उत्तराखंड के अधिकारी स्वयं को जनप्रतिनिधि समझ रहे है तो उन्हें तुरंत अपने पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए एवं पूरी तरह से राजनीति में आकर चुनाव लड़ना चाहिए।उन्होंने कहा कि अधिकारियों की कार्यशैली और व्यवहार यदि तुरंत प्रभाव से नहीं बदलता है तो जैसा आंदोलन उत्तराखंड राज्य की स्थापना के लिए किया गया था वैसा ही आंदोलन इन अधिकारियों की अफसर शाही के खिलाफ भी किया जायेगा।

Share This Article
Leave a comment