पिथौरागढ़ में दारमा घाटी के माइग्रेशन वाले गांवों में तोड़फोड़

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धारचूला (पिथौरागढ़) दारमा घाटी के चीन सीमा से सटे उच्च हिमालयी गांव तिदांग, गो, दुग्तु और फिलम गांवों के घरों में तोड़फोड़ कर राशन और अन्य कीमती सामान को नुकसान पहुंचाया गया है। इससे ग्रामीणों को काफी आर्थिक नुकसान हुआ है। ग्रामीणों ने भालू या शिकारियों की ओर से नुकसान पहुंचाने की आशंका जताई है।

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दीलिंग दारमा सेवा समिति के सदस्य गोविंद सिंह सेलाल ने बताया कि ग्राम तिदांग, गो, दुग्तु में एक-एक और फिलम में 12 घरों में तोड़फोड़ कर राशन को नुकसान पहुंचाया है। घटना की सूचना मिलने पर ग्राम प्रधान फिलम बिंद्रा देवी, समिति के महासचिव दिनेश चलाल और पीड़ित परिवारों ने एसडीएम और वन विभाग के अधिकारियों को ज्ञापन देकर उचित कार्यवाही की मांग की है।सूचना मिलने के बाद वन विभाग के रेंजर दिनेश चंद्र जोशी के नेतृत्व में विभाग के छह कार्मिक और पुलिस की पुलिस की संयुक्त टीम जांच के लिए गांवों को रवाना हो चुकी है। पीड़ित परिवार भी गांव को रवाना हो गए हैं। प्रधान बिंद्रा देवी ने पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने की मांग की है।

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शीतकाल में निचली घाटी में आते हैं ग्रामीण धारचूला दारमा घाटी के 14 गांवों के ग्रामीण शीतकाल में छह माह के लिए निचली घाटी में आ जाते हैं। इस दौरान गांवों में कोई नहीं होता है। पिछले चार-पांच सालों से घरों में तोड़फोड़ की घटना हो रही है। इस दौरान सुरक्षा कर्मी ही गांव में मौजूद रहते हैं। ग्रामीणों ने प्रशासन से शीतकाल में गांवों में गश्त लगाए जाने का अनुरोध किया है।धारचूला-मुनस्यारी के माइग्रेशन वाले गांवों में इलाज की सुविधा नहीं,सेना और अर्द्धसैनिक बलों पर निर्भर रहते हैं ग्रामीण

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चीन सीमा से सटे सीमांत धारचूला तहसील के दारमा, व्यास घाटी और मुनस्यारी के मल्ला जोहार में माइग्रेशन पर जाने वाले परिवारों के लिए आज भी स्वास्थ्य सुविधा नहीं है। धारचूला की दो घाटियों के 21 गांवों के लोगों के साथ ही मुनस्यारी के माइग्रेशन पर जाने वाले लगभग 14 गांवों के लोगों को बीमार पड़ने पर भगवान भरोसे रहना पड़ता है।

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धारचूला तहसील क्षेत्र की दारमा घाटी में चौदह गांव दर, नांगलिंग, सेला, चल, बालिंग, दुग्तु, सोन, दांतु, बोन, फिलम, तिदांग, गो, मारछा, सीपू और व्यास घाटी में सात गांव बूंदी, गर्ब्यांग, नपलच्यू, गुंजी, नाभी, रोंगकांग, कुटी माइग्रेशन वाले गांव हैं। इसके अलावा मुनस्यारी के मिलम सहित अन्य गांवों में भी लोग माइग्रेशन पर जाते हैं। हर साल अप्रैल अंतिम सप्ताह से इन गांवों के लिए माइग्रेशन शुरू हो जाता है।

ग्रामीण वहां पर पशुपालन और जड़ी बूटी की खेती करते हैं। अप्रैल से लेकर अक्तूबर तक इन घाटियों में खूब चहल-पहल रहती है। इसके बावजूद इन गांवों में स्वास्थ्य की कोई सुविधा नहीं है। स्वास्थ्य सुविधा नहीं होने से लोगों को बीमार होने पर धारचूला या मुनस्यारी लाना पड़ता है। धारचूला की दोनों घाटियां तो अब सड़क से जुड़ चुकी हैं लेकिन मुनस्यारी का मिलम क्षेत्र तक अभी यातायात सुविधा उपलब्ध नहीं है। ऐसे में किसी के गंभीर रूप से बीमार होने पर हालात मुश्किल हो जाते हैं।जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया का कहना है कि सरकार को माइग्रेशन वाले इलाकों में प्रवास के दौरान अस्थायी रूप से अस्पताल स्थापित करने चाहिए ताकि स्थानीय लोगों के साथ ही पर्यटकों को भी स्वास्थ्य सुविधा मिल सके।

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